कविता 1 : मेरी ख्वाहिशें

मेरी ख्वाहिशें 🤷‍♂
                  - कवि डेशवंत कुमार यादव

ख्वाहिश नहीं है मुझे आसमान में उड़ने की
मैं तो बस परिन्दों को समझना चाहता हूँ।

उनके नेक इरादों को, उनके अटल विश्वास को
करीब से परखना चाहता हूँ।

ख्वाहिश नहीं है मुझे आसमान में उड़ने की
मैं तो बस परिन्दों को समझना चाहता हूँ।

जिस अदम्य साहस से वे
मिलों की दूरी तय किया करते हैं

जिस विश्वास से वे लक्ष्य की ओर
प्रसन्न मन से आगे बढ़ा करते हैं।

उसी साहस और विश्वास को मैं
अपने अंदर जगाना चाहता हूँ।

ख्वाहिश नहीं है मुझे आसमान में उड़ने की
मैं तो बस परिन्दों को समझना चाहता हूंँ।

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