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कविता 4 : - प्रकृति मेरी अनोखी मां

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                 💚  कविता : -   प्रकृति मेरी अनोखी माँ ✍✍ अगम अगाध सिंधू की उफनती तूफान सी दुष्टों की दुष्टता का अंत करती है तो कभी संघर्षरत नदियों की निर्मल जल सी प्रकृति माँ की ममता झलकती है। कभी निर्मल पवन बन श्री हरि की गीता ज्ञान को चहुँ दिशाओं में प्रसारति है तो कभी सीमा पर लहू लुहान मिट्टी बन भारत के योध्दाओं को जगाती है। किसानों के खून पसीने से खुद को सेवित पाकर प्रकृति की अनुपम सौंदर्य कभी हरियाली से भर जाती है। तो कभी वृक्ष की सुंदर शाखाएँ  छायादार शैय्या बन राही की थकान मिटाती है l कभी वर्षा ऋतु के आगमन पर मोरनी सा नर्तकी बन सारे जगत को नाच नचाती है  तो कभी कोयल की सुंदर आवाज बन सबका मन बहलाती है सब में खरी उतरीं हैं वो दुनिया की जितनी कसौटी है तभी तो मेरी प्रकृति माँ  सबसे अनोखी है।